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________________ हजूरी प्रभाती पद - संग्रह ३१ - अनूप निशाकर हैं || जय शिव० ॥ १ ॥ परम विरागि रहें जगतै पै, जगत-जंतु रक्षाकर हैं। इंद्र फनींद्र खगेंद्र चंद्र जगठाकर ताके चाकर हैं ॥ जय शिव० ॥ २ ॥ जासु अनंत सुगुन मणिगननित, गनत गनीगन थाक रहैं । जा प्रभुपद - नवकेवललब्धि सु, कमलाको कमलाकर हैं । जय शिव० ॥ ३ ॥ जाके ध्यानकृपान रागरुप,. पासहरन समताकर हैं। दौल नैम कर जोर हरन भव, वाघा, शिवराधाकर हैं ॥ जय शिव०॥४॥ (=) उरग-रग- नरईश शीस जिस आतपेत्र त्रिधरे । कुंदकुसुमैसम चमर अमरगन, ढारत मोद भरे ॥ उरग० ॥ टेक ॥ तरु अशोक जाको अवलोकत, शोक थोक उजरे । पारजात संतानकादिके, वरसत सुमन व रे ॥ उरगः ॥ १ ॥ 9 नेकेलिये संसाररूपी तापको हरनेकेलिये अनुपम चंद्रमा है । ७ घ्यानरूपी तरवार से राग रोपकी फांसी काटनेवाले । ८ समताकी खानि । १ छत्र । २ तीन धरे । ३ कुंदके फूल समान ।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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