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________________ हजूरी प्रभाती पद-संग्रह ___२९ मेशा हैं। चिद्विलाससुखरास प्रकाश-शवितरन त्रिभोनदिनेशा हैं ॥ टेक ॥ दुर्निवार कन्दर्पसर्पको, दर्पविदरनखगेशा हैं। दुठे शठ कमठउपद्रव-प्रलय-समार-सुवर्ण-नगशा हैं ।। पास० ॥१॥ ज्ञान अनंत अनंत दर्शवल, सुख अनंत परमेशा हैं । स्वानुभूति रमनीवर भविभव, गिरपवि शिवसदमेशा हैं ॥ पास०॥ २॥ ऋषि मुनि यति अनँगार सदा तस, सेवत पर्दिकुशेसा हैं। वंदनचंद्रत झरै गिरामृत, नाशन जनमकलेशा हैं ।। पास० ॥ ३ ॥ नाममंत्र जे जपैं भव्य तिन, अंध-अहि नशत अशेषा हैं । सुर १ चेतन ( जीव ) के विलासरूपी सुखकी राशि प्रकाशको प्रकाश दान करनेवाले तीन लोकके सूर्य । २ दुखसे निवारा जाय ऐसे कामरूपी सर्पका गर्व दूर करनेके लिये खगेश कहिं गरुड़ हो । ३ दुष्टमूर्ख कमठकृत उपसर्ग रूपी प्रलयकालकी आंधींको रोकनेकेलिये सुमेरु पर्वत हैं। ४ अनन्त दर्शन ज्ञान सुख वलरूपी लक्ष्मीके ईश | ५ आत्माकी अनुभूतिरूपी रमनीके पति । ६ भव्यजनोंके संसाररूपी पर्वतको तोड़नेके लिये वज्र ।.७ एक प्रकारके संयमी । चरण कमल । १ मुखरूपी चन्द्रमासे । १० वाणीरूपी अमृतः ११ पापरूपी सर्प नाश हो जाते हैं सबके सब ।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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