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________________ २० जैन पदसागर प्रथमभाग प्रसाद सकल कर्म छूटत हैं मेरे ॥ टेक ॥ ऋषभ अजितसंभव अभिनंदन. केरे । सुमतिपद्म सुपार्श्व, चंदा प्रभुमेरे । बंदों ॥ १ ॥ पुष्पदंत शीतल श्रेयांस गुण घनेरे । वासुपूज्य विमल अनंतधर्म जग उजेरे । वेदों० ॥ २ ॥ शांतिकुंथु अरहमलि मुनिसुव्रत केरे 1 नमि नेमी श्वर पार्श्वनाथ महावीर मेरे | वंदों ॥ ३ ॥ लेत नाम अष्टयाम छूटत भवफेरे । जन्म पाय जादोंरायं चरननके चेरे| बंदों ० ॥ ४ ॥ (२५) - जय श्रीवीर जिनेंद्र चंद्र, शत, इंद्र वंद्य जगतारं ॥ टेक ॥ सिद्धारथकुल कमल अमल रवि भवभूघरपवि भारं । गुनमनि कोष अदोष मोखप्रति, विपिनं कषाय तुषारं ! जयश्री० ॥ १ ॥ मदनकदन शिवसदन पद-नमित, नित अनमित यतिसारं । रमी अनंत कंत अंतककृत, अंत संसाररूपी पहाड़को बड़े भारी वज्रसमान । २ कषायरूपी वनको तुषारकी समान । ३ अनंत मोक्ष लक्ष्मीके पति । ४ यमराजका अन्त
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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