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________________ www wwww NAAN wwwww हजूरी प्रभाती पद-संग्रह ऊपर आया है । चलत पसेव जरत अति काया, कर्मकलंक बहाया है। देखोजी० ॥४॥ऐसे गुरुके चरन पूजकर, मनवांछित फल पाया है। 'दौलत' ऐसे जैनजतीको, बारवार सिर नाया है। देखोजी०॥५॥ जिनवर-आनन-भान-निहारत, भ्रमतम-धान नशाया है । जिनवर० ॥ टेक ॥ वचन-किरन प्रसरनत भविजन, मन-सरोज सरसाया है। भवदुःखकारन सुखविस्तारन, कुपथ सुपथ दरशाया है। जिनवर० ॥ १ ॥ विनशायी कंज जल संरसाई, निशिचर समर दुराया है। तस्कर प्रवल कषाय पलाये, जिन धन-बोध चुराया है। जिनवर० ॥२॥ लखियत उड्डु न कुभाव कहूं अब, मोह उलूक लजाया है। हंसकोकेको शोक नस्यो निजा-परनति चकवी पाया है। जिनवर० १। काई दूसरे पक्षमें अज्ञानरूपी काई । २ कामदेव । ३ चोर1 ४ तारे । ५ आत्मारूपी चकवेका।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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