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________________ . [१०] महिमा है अगम जिनागमकी १३० माई माज आनंद कछु कहे न वने १८८ माई आज आनंद है या नगरी १८८ माई आज महामुनि डोले 'मानुष जनम सफल भयो आज महाक घर जिनधुनि अब प्रगटी म्हाकै जिनमूरति हृदय बसी बसी म्हारा मनकै लग गई मोहकी गांठ खोलों मैं तो जिनभागमसे१४१ म्हारी सुनज्यो दीनदयालु तुमसों अग्ज करूं १०७ म्हारी कौन सुने, थे तो सुनल्यो श्रीजिनरान मुनि वन आये बना शिववनरी ब्याहनकों मेघघटासम श्रीजिनवानी मेरी धार कहा ढील करीनी मेरी सुध लीजै अपम खाम, मोहि कीजे शियपथगाम "मैरो मनुवो अति हरपाय तोरे दरसनसों म्हे तो थाकी आज महिमा जानी अवलों उर नहिं मानी हे तो थापर वारी वारी वीतरागोजी में आयो जिन लरन तिहारी। मैं तुम सरन लियो तुम सांचे प्रभु महंत मैं नमजीका चंदा में सादिवजीका वंदा में यंदा खामी तेरा में हरख्यो निरख्यो सुख तेरो .
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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