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________________ जिनवाणीस्तुतिपद-संग्रह। १.४३ अव हूं तरि हैं बुधजन तुमतें, अंकित स्याद निशानी।। वानी०॥३॥ भैया भगवतीदासजीकृत। . २७-राग-धनाश्री। 'जिनवानी को को नहिं तारे ॥ जिनवानी०॥ टेक ॥ मिथ्यादृष्टी जगत निवासी, लहि समकित निजकाज सुधारे । गौतम आदिक श्रुतके पाठी, सुनत शब्द अघ सकल निवारे ।। जिनवानी ॥१॥ परदेशी राजा छिनवादी, भेद सु तत्त्व-भरम सब परे । पंच महाव्रत धर तू भैया, मुक्तिपंथ मुनिराज सिंधारे॥जिनवानी०॥२॥ २८ । राग-धनाश्री। जिनवानी सुन सुरत संभारे ॥ जिनवानी०॥ टेक ॥ सम्यग्दृष्टी भवननिवासी,गहि व्रत केवल तत्त्व निहारे । जिनवानी० ॥ १॥ भये धरनेंद्र पद्मावति पलमें, युगल नाग प्रभु पास उबारे ।। बाहूबलि वहुमान घरत सो, सुनत वचन शिव १ पाक्षणिकवादी वोधमती।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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