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________________ १०५ " हजूरीपद - संग्रह 15: भयो धीरंज, अद्भुतः सुखसमत्ता बरसाए। आधि ब्याधि अंब दीखत नाहीं, घरमकलपतरु आंगन छाए ॥ श्रीजिन० ॥ १ ॥ इतमें इंद्र चक्रधर, इतमें, इतमै फनिंद खडे सिरनाए । मुनिजनवृंद करें श्रुति हरखत, धनि हम जनमें पदपरसाए ॥ श्री जिन० ॥ २ ॥ परमोदारिकमै परमातम, ज्ञानमयी हमको दरसाए । ऐसे ही हममें हम जानें, बुधजन गुनमुख जातः न गाए ॥ श्रीजिन० ॥ ३ ॥ .. - (१२२.) ) राग आसावरी जोगिया ताल घीमो वेतालो । करम देत दुख जोर, हो सांइयां ॥ करम-टेक ॥ + कई परावृत पूरन कीने, संग नै छांडत मोर, हो सांइयां ॥ करम ० ॥ १ ॥ इनके वशर्तें मोहि बचाओ, महिमा सुनी अति तोर, हो साइयां ॥ करम ॥२॥ बुधजनकी विनती तुमहीसों, तुमसा प्रभु नहिं और, हो साइयां ॥ करम० ॥ ३ ॥ १२३ ॥ राग असावरी । अरज म्हारी मानोजी, याही म्हारी मानों, · NE
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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