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________________ - हजूरी पद-संग्रह । (१०८). दास तिहारो हूं, मोहि तारो श्रीजिनराय ॥ दास तिहारो भक्त तिहारो, तारो श्रीजिनराय || दास०॥ टेक ॥ चहुँगति दुखकी आगतैं अब, लीजे भक्त वचाय ॥ दास० ||१|| विषय - कषायठगनि ठग्यो, दोनोंतें लेहु छुडाय ॥ दास०॥२॥ द्यानत ममता नाहरीतें, तुम विन कौन उपाय ॥ दास० ॥ ३ ॥ ... " ९९ ( १०९ ) 1 जिनवरमूरत तेरी, शोभा कहिय, न जाय !! जिनवर ० ॥ टेक ॥ रोम रोम लखि हरख होत है, आनंद उर न समाय ॥ जिनवर० ॥ १ ॥ शांत रूप शिवराह वतावै, आसन ध्यान उपाय ! जिनवर० ॥ २ ॥ इंद फ़निंद नरिंद विभव सब, दीसत हैं दुखदायं ॥ जिनवर० ॥ ३ ॥ द्यानत पूजे ध्यावै गावै, मन वच काय लगाय ॥ जिन 11.201
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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