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________________ ९४ जनपदसागर प्रथमभाग ॥४॥जातिविरोध जात जीवनके, मूरति देख तिहारी। मानतुंगके बंधन टूटे, यह शोभा तुम न्यारी । जिनराय० ॥५॥ तारन तरन सु विरद तिहारो, यह लखि चिंता डारी । द्यानते शिवपद आपहि देहो, बनी सुवात हमारी ॥जिनराय०॥६॥.... .. त्रिभुवनमें नामी, कर करुना जिनस्वामी।। त्रिभुवनमें॥टेक ॥ चहंगति जन्म मरनकिम भाख्यो, तुम सब अंतरजामी । त्रिभुवन में ।। करमरोगके वैद तुमहि हो, करों पुकार अकामी । त्रिभुवनमें ॥२॥धानत पूरव-पुण्य उदयतें, सरन तिहारी पामी । त्रिभुवनमैं ॥३॥ ९७। राग धमाल। . मैं बंदा स्वामी तेरा ॥ मैं॥टेक ॥ भवमः जन आदि निरंजन, दूर दुःख मेरा। मैं॥शी नाभिराय नंदन जगवंदन, मैं चरननका चेरा। मैं.॥२॥ बानत ऊपर करना कीजे दीज़े.शिवपुर डेरा ॥ मैं०॥३॥
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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