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________________ (२४) कूनागढका लेवे ॥ बीचमें रेल जयतपुरमें बदलती है। कूनागढके रेलके इष्टेसनसे एकमील दिगंबर खेतंबरकी धर्मशाला है इनमें ठहरे ॥ मंदिर एक दिगंबरका है ॥ जूनागढसे दिनके तीनबजे पीछे ॥ पूजनकी सामग्री लेवे खानेका सामान धोती. दुपट्टे बिछानेकेवास्ते इन आदि जो वस्तु चाहिए सो लेवे ॥ - नागढसे तीन मील दिगंबर. खेतंबरकी धर्मशाला है उनमें ठहरे इहांसे सवेरे स्नान करके पूजनकी सामग्री लेके चले सो गिरनारके पर्वत ऊपर दिगंबरके दो मंदिर हैं वहां पूजा करे ॥ फिर केवल कल्याणके स्थानमें मोक्षके स्थानमें दीक्षाके स्थानमें इन आदि सर्व स्थानमें पूजा करे इस गिरनार प. र्वत ऊपरसे नेमनाथ स्वामी ॥ प्रद्युम्न कुमार ॥ संअकुमार अनिरुधकुमार आदि बहत्तर करोडमुनि मोक्ष गये हैं । इस.पर्वतसे उतरके नीचे धर्मशालामें आवे इहां खानेका सामान रखा है सो खाके जूनागढ आवे ॥ ४३ ॥ जूनागढसे टिकट अमदाबादका लेवे बीचमें दो ठिकाने रेल बदलती है। जयतपुरमें ॥ बढवानमें इस रेलसे उतरके अमदाबाद जानेवाली रेलमें बैठे ॥ अमदाबादमें रेलके सामने बावडीके पास बडी धर्मशाला है. वहां उरे ॥ मंदिर तीन
SR No.010370
Book TitleJain Yatra Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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