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________________ ( १९ ) इसी विचारने उन्हें भयवान बना दिया था । इसका उन्हें पूर्ण खटका था। उसपर भी ऐसे समय में नत्र कि बाबू अजितप्रसादजी सरीखे स्वाधीनचेता उसके सभापति हों । संभव है, पाठक हमारी इस कल्पनाका विश्वास न करें पर हम उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि यह त्रात विल्कुल सत्य है । उन लोगोंके यहां कई लोगोंके पास पत्र आये थे । उनमें उन्होंने लिखा था कि " आपको इस विषयका पूर्ण ध्यान रखना चाहिए कि हमारे विरुद्ध वहां कुछ कार्रवाई न की जाय, न महासभा के सम्वन्धमें कोई बात उठाई जाय और न उसकी किसी कार्रवाईका प्रतिवाद किया जाय । इसका मार सत्र आपके ऊपर है -आदि । "} वे लोग केवल पत्र लिखकर ही चुप न होगये । होवें क्यों, उन्हें तो इस विपयकी बडी भारी चिन्ता होगई थी न ? इसलिये उन्हें और भी इसकाममें आगे बढ़ना पडा । उन्होंने कुछ आदमियोंको, जो कि अपनी खुशामद करनेवाले थे, अधिवेशनकी हर तरहसे असफलता होनेके लिए यहा भेजे । वे आये और उन्होंने जहांतक अपनेसे हो सका अधिवेशनकी असफलता के लिये प्रयत्न किया | भोले लोगोंको भी बुरी सुनाकर उन्हें अपनी ओर शामिल किये । सचमुच जिन लोगोकों संसारकी प्रगतिका कुछभी परिज्ञान नहीं है, जिन्हें उन्नति और अवनति एक सरीखी जान पड़ती है, अपनी भलाई के सिवा जिन्हें कभी यह ख्याल नहीं होता कि हमारी जातिकी आज कैसी भयानक स्थिति होगई है ? उनका ऐसे कार्योंमें सहायता देना कुछ आश्चर्यकी बात नहीं है । इसका खया तो उन्हें हो सकता है जो जातिकी अवनतिको अपनी अवनति -
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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