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________________ नायी जैनीको शुद्धकागज बनानेका एक कारखाना खुलवा दीजिए और वचोंको धर्मग्रन्थ पढानेकी झझटमें तो आप पड़िये ही नहीं। शैतान बच्चे कहीं शुद्ध रह सकते है ? जब आप इस तरह सर्व प्रकार शुद्धताका इन्तनाम करलें, तब अपनी लेखनशालाको किसी प्रदर्शनीमें ले जानेका भी उद्योग करनेसे न चूकें। दिगबरजैनके सम्पादकने बड़ी गलती की जो उसने अपने दीपमालिकाके अकमें जैनगजटके धर्मात्माओंका एक भी चित्र प्रकाशित न किया । जैनगजटका लिखना बहुत दुरस्त है। भला ऐसी जबर्दस्त गलतीपर कौन खामोश रह सकता है। जिन सेठों और विद्वानोंकी तारीफ करते करते बड़े बड़े लिक्खाडोंकी कलमें घिसी जाती है और आज जो अपनी सारी शक्तियोंको इस लिए खर्चकर रहे है कि जैनसमानको कहीं वर्तमान समयकी उन्नतिका भूत न लग जावे, उनके चित्र नहीं छापना और दूसरे यहां वहाके यहां तक कि विलायत गये हुए वाओं और भट्टारकों तककी भरती कर देना, यह क्या कोई छोटी मोटी गुश्ताखी है। इसकी सजा उसे जरूर देनी चाहिए और धर्मात्माओंकी मनस्तुष्टि के लिए श्रीमती रत्नमाला या नैनगजटका दीपमालिकाका खास अंक निकालकर उनके ... चित्र प्रकाशित करनेका उद्योग करना चाहिए। मौजी।
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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