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________________ (५९) (२) एक बूढे पण्डितनी बडे पके आराधक है । जैन समाजमें सैकडों उलट फेर हो गये-जमाना बदल गया, परन्तु उन्होंने अपना जय एक घडी भरके लिए भी न छोडा । ' छापेका क्षय' 'छोपेका क्षय ' करते करते उनकी उमर गुजर गई। छापेके विरोधी देवता भी बड़े विकट निकले । अपने भक्तकी उन्होंने बड़ी कडी जाच की। जब बूढे वावा अपनी सफर तै करनेके अन करीब पहुंच गये, तव कहीं उनके कानोंपर जूं रेंगी और वरदान देनेके लिए तैयार हुए। इस समय एकाधा नहीं कई देवता उनपर प्रसन्न हो गय है और उनकी एक निष्ठतापर लट्ट है। बूढे वावा जो कहते है, वे उसी वक्त सिरके वल करनेके लिए तैयार है। अभी बावाने कहा कि महाविद्यालयमें छपे हुए जैनग्रन्थ न पढाये जावें चट देवोंने कहा वहुत ठीक । उधर रत्नमाला जैनगजट आदि देव शक्तिया उनकी आज्ञाकारिणी हो ही रही है । अत्र वावाको भरोसा हो गया है कि छापेको बहुत जल्दी जैन समाजसे खदेड़कर बाहर कर देंगे। मैं समझता था कि इस खबरसे छापेके देवता में बड़ी खलबली मचेगी, परन्तु यहा देखता हूं तो कुछ नहीं-सत्र अपने अपने कामोंमें मस्त है। एकसे पूछा तो उसने लापरवाहीसे हँसकर जवाब दिया-यह पचमकाल है । इसमें न पुराने देवता ओंकी चलती है और न उनके भक्तोंकी । जैसे शंख देवता वैसे महाशंख उनके भक्त । कुछ दिन कूदफाद मचाकर आप ही आप ठंडे हो जायगे। ये वेचारे छापेको क्या खदेड़ेंगे ? उनके देवता ओं तककी तो विना छापेकी गति नहीं । तुमने क्या सुना नहीं
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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