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________________ (५१) जितना ज्ञान प्राप्त करती है, उतना ज्ञान जीवनके अवशिष्ट भागमें वह कभी नहीं कर सकती। किसी एक अंग्रेजी पुस्तकों लिखा है कि किसी स्त्रीने अपनी सन्तानको चार वर्षको अवस्थामें किमी धर्मगुरुके पास लेनाकर उससे अपनी इच्छा प्रगटकी कि महाराज ! कबसे मैं अपने बच्चेको पहाना आरभ करू । उसके उत्तरमें धर्मगुल्ने कहा कि सन्तानकी अवस्था चार वर्षकी हो चुकी और तबतक उमे शिक्षा देना आरंभ नहीं किया तब कहना चाहिये कि उसके जीवनके अति मूल्यवान चार वर्ष तुमने व्यर्य ही नष्ट कर दिये । इसके लिये तुम्हें पश्चात्ताप करना चाहिए । वालक जब अपनी माताकी और देखकर हँसने लगता है तब उसी हसीके माय साथ वालको शिक्षा देना माताका कर्तव्य है। कारण तवहीसे शिक्षाका समय उपस्थित होता है। __ शिक्षाप्रणाली दो प्रकारकी है। एक दृष्टान्त द्वारा और दूसरी उपदेश द्वारा । इन दोनोंमें पहली प्रणाली अधिक कार्यकारी और जीवनपर असर डालनेवाली है। इस दृष्टान्तप्रणालीसे माताके द्वारा नाना तरहकी शिक्षा प्राप्त होती है। क्योंकि दूसरोंका अनुकरण करना वालकोका खाभाविक कर्तव्य होता है। वालकगण परिवारके वीचमें जो कुछ देखते हैं, फिर वे उसीके करनेकी चेष्टा करते है और जो कुछ सुनते हैं वे उसे बोलना चाहते हैं। वालोंका मन हरिततृणकी तरह अत्यन्त कोमल होता है। सुतरा तृगको निस भाति नवाना चाहो वह नवाया ना सकता है । वही हालत नालकोंके मनकी है। उसे निस तरह शिक्षित किया जाय वह उसी तरह हो सकता है । उममें एक और विशेषता है । वह यह कि उस समयकी शिक्षाका असर
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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