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________________ ( ३३ ) है मेरे वाद लोगोंके हृदयमें बुरी कल्पनाका उदय हो । क्योंकि मुझे पुनीत सीता देवीकी जीवनी खूब याद है । वह पवित्र थीपूज्य थी। पर लोग उसे भी टोपोंसे मुक्त नहीं कर सके । तब मैं किस गिनतीमें हूं । लोग मेरे इस आकस्मिक ................ का वास्तविक कारण न समझ कर तरह तरहकी कल्पना करेंगे। तत्र आप उन्हें निर्मल ज्ञान देना । जिससे वे समझे कि कश्चन निर्दोष यी-निकलक थी । मैंने दु खके परवश हो जिस कामको करना विचारा है-जिसका मै अनुष्ठान करूगी-संभव है वह पापकर्म हो, पर इससे मेरा हृदय दोषी नहीं कहा जा सकेगा। क्योंकि पाप पापमें भी वडा अन्तर है। मेरा यह अनुष्ठान वह पापकर्म नहीं है जो हृदयकी बुरी वासनाके द्वारा होता है । फिर कैसा है ? यह आप जानते हो, मैं क्या कहूं। ___ मैं इतन दिनातक अबला थी पर अब मै वह कञ्चन नहीं रही। अब मुझमें वल है । म कठिनसे कठिन और असंभवसे असभव कामको भी अब कर सकती हूं । केवल कर ही नहीं सकती है, पर करके दिखलाऊंगी। मैं अपने..... ... के संकल्पको पूरा करगी। मुझे इससे उतना दुख नहीं जान पड़ता जितना कि इस अवस्थाका दुख मुझपर असह्य भार हो रहा है । जो हो आप मेरी प्रार्थना पर ध्यान देना । अधिक मैं कुछ नहीं कहना चाहती । ___ वह फिर वोली-प्राणनाथ ! दयासागर !! अनाथरक्षक !!! मेरा अपराध-भयकर अपराध-आप क्षमा करना । मैं आपकी यी पर आपने मुझे अपनी न समझी। इसी दु खसे-भयंकर विपत्तिसे-मुझे आपके धर्म विरुद्ध.......... ..........कहते कहते कञ्चनका गला भर
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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