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________________ (११) चाहे दरिद्र और स्वार्थीके घरमें भले ही उत्पन्न हुई हो, पर उसमें कुलीनता है । वह अपने कुलकी मर्यादा रखना जानती है । इसलिए वह दुःख भोगती है पर उसकी परवा नहीं करती । सचमुच उसमें शिक्षाको सुगन्धने उसके कञ्चन नामको सार्थक कर सोने और सुगन्धकी कहावतको चरितार्थ करदी है। ___ जब उसे अपने पिताकी स्वार्थताका ध्यान आता है तब उसका हृदय-कोमल हृदय-फटने लगता है। कभी कभी तो उसकी हालत यहातक विगड जाती है कि उसे खाना पीनातक जहर हो नाता है। उसे रोनेके सिवा कुछ सुझता ही नहीं । कभी वह अपने बुरे कर्मको धिक्कारती है, कभी परमेश्वरसे प्रार्थना करती है, पर उसे किसी तरह शान्ति नहीं मिलती-उसका दुःख कम न होकर बढ़ने ही लगता है। ___ हम केवल कञ्चनहीकी हालत क्यों कहें ! आज तो हमारी जातिभरकी यही हालत हो रही है। वह न गुणोंका विचार करती है, न बुद्धिपर ध्यान देती है, न चालचलन पर खयाल करती है और न अवस्थाकी मीमासा करती है । तब करती है क्या ? केवल पैसा देखकर फिर वह चाहे मूर्ख हो, कुरूप हो, वृद्ध हो, वालक हो अयवा वीमार हो उसके साथ अपनी प्यारी पुत्रिया विवाह देती है। यों कहो कि उन्हें नरकयातना भोगनेके लिए ऐसोंके गले लटका देती है। इन दुराचरणोंसे हमारी जातिका दिनों दिन भयंकर हास हो रहा है और अभी होगा । क्योंकि अभी इन दुराचारोंके रोकनेका कुछ भी उपाय नहीं किया जाता है।
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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