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________________ और आपके देखनेकी वैसी शक्ति नहीं है तो उसे आप ही पूर्ण करना | जिसकी कमी हो उसका पूर्ण करना आपके हायमें है । 'पर हे नाय ! अब आपका इधर आये बिना छुटकारा नहीं हो सकता। आइये! अघमोद्धारक! आइये!! इस हृदय मन्दिरमें पधारिये । पर हे नाय! मुझे इस बातका बड़ा दुःख है कि आपकी सेवा करनेके लिए मेरेपास कुछ नहीं है । मैं किससे आपकी सेवा कर। इसकी मुझे कुछ सूझ नहीं पड़ती । मैं तो केवल यही वारबार प्रार्थना करता हूं कि हे करुणासागर! आप आइये और मत जनोंकी अभिलाषा पूरी कीजिए। - -- - हे गुरुदेव ! मैं आपके पाससे धन, दौलत, आदि कुछ भी नहीं मागता { पर हां एक चीजकी मुझे अवश्य जरूरत है । उसके लिए मैं आपसे भीख मागंगा । मुझे विश्वास है कि आपसे चिन्वामणिक पास मेरी याचना भीख-व्यय न जायगी-मुझे निराश न होना पड़ेगा | आप मुझे मेरी मांगी हुई मिक्षा प्रदान करेंगे। मैं आपकी सेवा करना मागता हूं-आपके चरणकमलकी सेवाका व्रत चाहता है। यद्यपि मैं यह अच्छी तरह समझता हूं कि तलवारकी धार पर चलनेसे मी कहीं अधिक भयंकर यह व्रत है पर फिर भी इसीकी याचना करता हूँ! हे विभो ! आपको वहां अकेला रहना कैसे अच्छा लगता है। हम लोगोंको अनानान्धकारमें होड़कर आपक्म वहां रहना क्सोकर उचित हो सकता है ! आज आपके पवित्रधर्मकी स्थिति कैसी होगई है ! आप इससे अनभिज्ञ नहीं हैं। नहीं जान पड़ता फिर आप इस ओरसे क्यों निरुद्यमी हैं ! अब अवधि आमई है।
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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