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________________ - स्थादादग्रंथमाला। स्वादादपंधमालामें सरप्रय भाषा, वा भाषाटीका साइत छपते है। वार्षिक न्योडावर ५) १० है डाकखर्च जुदा है सो प्रत्येक सक डाफखर्च मानके वी. पी से भेजा जाता है । पाच रुपयों में ९० फारमतकके प्रथ भेजे। जाते हैं। एक फारममें वदे रहे ८ छेटे छोटे १६ पू होते हैं। हाल में तीन प्रपर गये। जिनशतक सस्कृत तथा भाषाटोसहितफारम १९८ न्यो) का धर्मरत्नोघोत चौपईवध फारम ध १८२ । न्यो०१९ धर्मप्रश्नोत्तरवचनिका का न ३४ र २६८। चौथा प्रथ सान्वरार्थ व भा. वार्थसहित तत्वासार उपंगा । हारमें धोजादिपुरागजी सत्कृत लौर वचनिकाबहुत ही सुदर रहे हैं। जिसके अनुमान २५० फारम वा२०..पृष्ट होंगे यह प्रथ भी हरमहीने जितना पता है सबको भेजा जाता है । ९० फारम । परेहुये बाद फिर सबको ५)रु भेजे होंगे। जिनको नये २मयोको खाध्याचरना है ५)रु भेजकर वावापानरल्लेि प्रयनगाकर ग्राहक रन जावें। सनातनजैनग्रंथमाला। इस अपमान में सव प्रथ सस्कृत प्राइन व संस्कृतीफासहित उरते है । यह प्रथमाला प्रचीनप्रथाका जीर्जेदारकरके सर्वसाधारणमें जैनधर्मा प्रभाव प्रकट करने की इच्छासे प्रगट की जाती है । इसमें सब विषयोंके प्रय रेंगे। हालमें लाप्तपरीक्षासटीक, समपसारनाटक दो सस्कृतटीकासहित, र रहे है। इनके पक्षात रविषषशाचार्यकत परामजी वा राजतिक्जी रेंगे। इसको वार्षिक न्यावर • है। प्रलेसक १० फरमका होगा। जिसमें दो से अधिक प्रथ नहिं होंगे। डॉक खर्च जुदा है सो प्रत्येक नक डाक खर्च के वी पीसे भेजा जायगा। यह प्रयमाला जिनधर्मका जीपोद्धार करने वाला ई-इसका प्राहरू प्रत्येक जैनी भाई मंदिरजी सरस्वतीभारको बनकर तप प्रय सग्रह करके सरक्षित करना चाहिये और धनोरमा दानवीरोको इाप्रपनगार अन्धनतीविदुनो पुस्तालयाको वितरण करना चाहिये। पता-पन्नालाल बाकलं वाल मालिक-स्थाद्वादरत्नाकरकार्यालय, पोह-पनारस सिटी। -
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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