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________________ ( ८९ ) श्वेद्याप्रचार और उपदेशादिके द्वारा जातिकी कुरीतियां नष्ट करना है। उद्देश्य तो बहुत अच्छा है यदि समाने कार्यकर्त्ता रूयं उनपर चटकर औरोंको भी उसपर चलानेके लिए प्रयत्न करें। क्योंकि पर उपदेश कुशल बहुतेरे की उक्तिको चरितार्य करने वाले तो बहुत हैं, पर उन लोगोंकी बड़ी नरूरत है जो कह कर स्वयं भी उसपर चलने वाले हों । समाजपर ऐसे लोगोंका ही बहुत प्रभाव पड़ता है । हमें यह जानकर बहुत खेद होता है कि उत समाके कार्यकर्त्ताओंने जिम उद्देश्य को लेकर यह समा स्थापितकी है, वे स्वयं भी उस पर चलने के लिए वान्य नहीं हैं । दहली के एक सम्वाद दाताने हमारे पास जो समाचार छपनेके लिए मेने हैं और यदि वे सत्य हैं तो हम कहेंगे कि यह हमारे लिए बड़ी मारी लज्जाकी चात है जो हम स्वयं अपने स्थापित किये उद्देशपर नहीं चलते हैं । लेखकने लिखा है कि श्रीयुक्त सभापति महाशयने अपने भतीजे दिर एक लड़का दत्तक लिया है । उसकी खुशीमें उन्होंने वार्मिक संस्थाओंकों भी कुछ दान दिया है और वह सबके अनुकरण करनेके योग्य है। इसमें सन्देह नहीं कि यह कार्य आपने बहुत अच्छा किया है । आपकी धर्मबुद्धिका इसमे परिचय मिलता है । पर ऐसी धर्म बुद्धिके होनेपर भी फिर न जाने क्यों आपने इस मंगल कार्यमें वेश्याओंका नाच करवाया ? क्या इन कुलकलंकिनियोंके बिना आपके कायमें शामा नहीं होती ? जो पैसा इन्हें दिया गया, क्या ही अच्छा होता यदि वही अपने देश या जातिके दुखी, अनाय, भाइयोंके उपकार में खर्च किया जाता ? इसीसे तो हम कहते हैं कि हमें उन टोगोंकी जरूरत है जो पर उपदेश कुशल बहुतेरे इस उक्तिके
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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