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________________ 'सुखदा' में सुखदा विवाह से पहले अपने भावी जीवन के सम्बन्ध में जो सपने देखती है, वे पूरे नहीं होते। अभावग्रस्त स्थिति उसे बाहर से आये आकर्षणों के प्रति और प्रेरित करती है। लाल का भव्य व्यक्तित्व उसे इसलिए प्रभावित करने में समर्थ हो सका है, ऐसी स्थिति में घर का माहौल असन्तोषजनक हो जाता है, और पति-पत्नी का आत्मिक मिलन सम्भव नहीं हो पाता। श्री रघुनाथ सरन झालानी के विचार इस सदर्भ में द्रष्टव्य है - 'लाल के मुक्त, स्वच्छन्द और रहस्यात्मक चरित्र से वह आकृष्ट होती है' किन्तु उसके पति कान्त को लाल की देश-भक्ति में विश्वास नहीं है और इसी बल पर वह सुखदा में लाल के प्रति किंचित विरक्ति का भाव उत्पन्न करने में सफल होता है, किन्तु तभी लाल को उसके दल की ओर से मृत्यु-दण्ड सुनाया जाता है और इस अवसर पर वह सुखदा की सहानुभूति जीत लेता है और उसके हृदय में प्रेम को जागृत करता है। जब यह बात कान्त को पता चलती है कि लाल सुखदा से प्रेम करता है तो उसे यह स्वीकार नहीं कि सुखदा यह महसूस करे कि वह विवाहित होने के कारण लाल से कदापि प्रेम नहीं कर सकती। सुखदा के लिए अधिकार की भावनाओं उसमें पहले भी नहीं थी, और अब तो वह उसको और भी अधिक स्वतन्त्रता देने को तत्पर है। 'कल्याणी' में कल्याणी और उसके पति का सम्बन्ध इतना शंका ग्रस्त होता है कि उनमें एक दूसरे के लिए समर्पण की भावना जागृत होने का प्रश्न ही नहीं उठता। जैनेन्द्र के उपन्यासों में पति की तरफ से पत्नी को प्रेम करने की पूरी छूट रहती है, पति कभी भी पत्नी के प्रति क्रुद्ध नहीं होता, किन्तु कल्याणी अपने पूर्व प्रेमी के प्रति अपने प्रेम को प्रकाशित करने में असमर्थ होती है, उसका प्रेम भीतर ही भीतर बढ़ता रहता है। उसकी वेदना के मूल में प्रेम की 16 श्री रघुनाथ सरन झालानी - जैनेन्द्र और उनके उपन्यास, पृष्ठ -79 [44]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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