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________________ बनाकर इस प्रकार प्रस्तुत किया कि उनकी नीरसता का तो परिहार हो ही गया साथ ही एक विशाल युग का चित्रपट साकार हो उठा। उन्नीसवीं शताब्दी में सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन में क्रान्ति और नवीन खोजों के कारण आमूल परिवर्तन हुए। इस परिवर्तन में एक नूतन चेतना पून्जीभूत थी जिसकी अभिव्यक्ति परम्परागत साहित्यिक अभिधान में सम्भव न थी। इसलिए परिवर्तनशील युग चेतना के परिपार्श्व में सामाजिक मूल्यों के अभिव्यंजनार्थ गतिशील साहित्यिक विधा कथा साहित्य का जन्म हुआ जो आज भी अपने दायित्व का निर्वाह कर रही है। यही कारण है कि जैनेन्द्र कुमार अपने युग का सर्वांगीण चित्र प्रस्तुत करने के लिए काव्य से कथा साहित्य में आये और अपनी कृतियों में घटनाक्रम एवं पात्रों में युग के प्रतिबिम्ब-स्वरूप उन्होंने कथा साहित्य को अपनी सूक्ष्म दृष्टि की सहायता से युग साक्ष्य के रूप में विकसित किया। यूँ तो जैनेन्द्र कुमार हिन्दी कथा साहित्य के क्षेत्र में पहले-पहल चिन्तक के रूप में आये लेकिन एक बार अपनी प्रतिभा के इन उपकरणों की क्षमता जान लेने के बाद उन्हें चिन्तन के मुखौटे की कोई आवश्यकता न पड़ी। जैनेन्द्र कुमार को युग चितेरा होने में अपनी प्रतिभा का उल्लास दीख पड़ा। उनकी कृतियाँ - 'परख', 'सुनीता', 'सुखदा', 'फॉसी', व्यतीत', 'जैनेन्द्र की कहानियाँ' और 'अनन्तर' आदि ऐसी रचनाएँ हैं जिनमें सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक तथा शिल्पगत चेतना का रूप मिलता है। जैनेन्द्र कुमार सच्चे अर्थों में युग चेतना के प्रतिनिधि कलाकार हैं जिनकी कृतियाँ भारतीय जनमानस की प्रतिच्छवि हैं। सामाजिक स्तर पर जैनेन्द्र कुमार ने स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को लेकर उनसे सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं की ओर दृष्टिपात् किया। परिवार, ब्रह्मचर्य, विवाह, प्रेम-विवाह, वैवाहिक जीवन में प्रेम, [211]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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