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________________ पात्रों के कथनों तथा संवादों द्वारा भी लेखक का दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है। यों तो पात्रों के कथन भी संवादों में ही आते हैं किन्तु फिर भी दोनों में एक सूक्ष्म सा अन्तर है। कथनों में हम पात्र के उस संवाद को लेवें जिसमें वह बोलता रहता है तथा दूसरा पात्र अपेक्षाकृत मौन रहता है। अपने कथन को विस्तार से कहते समय प्रायः वक्ता दूसरे पात्र की उपस्थिति का ध्यान नहीं रखता मानो वह हो ही नहीं। यदि दूसरा उपस्थित पात्र कहीं बोलता भी है तो मात्र हॉ, हूँ या तनिक से कथन से स्वयं को सन्तुष्ट कर लेता है। मानो दूसरे वक्ता पात्र को अवकाश दे रहा हो। 'सुनीता' में हरि प्रसन्न श्रम, उत्पादन, वस्तुओं के मूल्यों की विस्तृत चर्चा करता है। हरि प्रसन्न ऐसा आभास देता है कि वह मूल्य बदलने वाली विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा हो। वह क्रान्ति की भी चर्चा करता है। यद्यपि व्यावहारिक रूप में वह क्रान्ति के लिए सुनीता को जंगल में ले जाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करता। हरिप्रसन्न के वक्तव्य में हम क्रान्ति का सैद्धान्तिक विवेचन पाते है।12 श्रीकान्त रूपये पर स्वामित्व की व्यर्थता को सिद्ध करते हुए अपना कथन प्रस्तुत करता है। अन्यत्र श्रीकान्त सुनीता की उपस्थिति में साधुत्व के खोखलेपन को लक्ष्य करता है। वह इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को प्रकट करता है कि स्त्री पुरुष की परस्परता में ही व्यक्तियों का हितलाभ है। 'त्यागपत्र' में मृणाल उपन्यास के उत्तर-भाग में लम्बे-लम्बे वक्तव्य देती है, यद्यपि उसके सामने प्रमोद उपस्थित रहता है। मृणाल कोयले वाले के प्रसंग के माध्यम से स्त्री के शाश्वत धर्म, सेवा तथा प्रेम का परोक्षतः प्रतिपादन करती है। उसके कथनों में व्यंग्य है कि अप्रेम पाप है।175 172 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ - 30-31 173 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ -33 174 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता. पृष्ठ -21-22 175 जैनेन्द्र कुमार - त्यागपत्र, पृष्ठ-67-68 [208]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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