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________________ चरित्रों के शील-निरूपण तथा रूप-चित्रण में मितव्ययिता का सुखद परिणाम यह हुआ कि जैनेन्द्र जी के साहित्य में हमें पात्र आकर्षित करते हैं। एक ऐसा चित्र प्रस्तुत है-'बडी प्यारी दिखती है तमारा। पैंतीस बरस की होगी। ब्याह नहीं किया है, आर्टिस्ट है। जैनेन्द्र का काम संक्षिप्तता द्वारा इसलिए चल जाता है क्योंकि इस संक्षिप्तता में व्यंजना के प्राण हैं। वह थोडा कह कर भी बहुत कुछ कह जाते हैं, कल्याणी के समान वे 'चार में तीन हिस्से बात की झनक ही रखते हैं और समझते हैं कि समझने को काफी हो गया। इस व्यंजना शक्ति को आलोचकों ने अत्यंत शक्तिशाली तथा आकर्षण से पूर्ण माना है।119 जैनेन्द्र बहुत सी बात संकेत से भी कह देते हैं, यह उनकी व्यक्तिगत रुचि है। कथाकार ने सांकेतिक शैली का विशेष रूप से वहाँ प्रयोग किया है, जहाँ वे गोपनीय बात कहना चाहते हैं। मृणाल और शीला के भाई के प्रेम सम्बन्धों का आभास-सांकेतिक शैली में दिया गया है। लेखक इस कला में दक्ष है। प्रमोद के द्वारा पत्र का माई डियर (My dear) दिखाकर पाठकों को वह उद्घाटन कर देता है, कि वह प्रेम-पत्र था। जैनेन्द्र चिन्तनशील कलाकार हैं। वह कुछ अबूझ तथा वास्तविकता से परे को पकड़ना चाहते हैं। कथा साहित्य के सन्दर्भ में वस्तव को सत्य की सीमा पर स्वीकार नहीं करती तथा सत्य को वास्तव से परे भी मानकर चलती है। डॉ० मक्खन लाल शर्मा के शब्दों में-'प्रतीक में इतनी गहन व्यंजना-संकुलता एवं देशकाल, परिस्थिति निरपेक्ष सार्थकता रहती है'-120 जैनेन्द्र अपनी प्रतीक शैली के द्वारा बहुत गूढ़ बात कह जाते हैं तथा साफ बचे भी रहते हैं। जैनेन्द्र की 118 जैनेन्द्र कुमार - मुक्तिबोध, पृष्ठ -28 119. डॉ० राम रतन भटनागर - साहित्य और समीक्षा, पृष्ठ - 173 [198]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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