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________________ संवादों से चरित्र अभिव्यक्त होता है। व्यक्तित्व की कुछ विशेषताएँ संवादों की शब्दावली, शब्द चयन, उनके कहने के ढंग से स्पष्ट हो जाती हैं । इस प्रकार के संवाद अन्य पात्रों के विषय में टिप्पणी देकर उसका चरित्र विकास करते हैं। बिहारी से वार्तालाप करते समय कट्टो के संवादों से अडिग आत्म विश्वास टपकता हैं। 786 वह बिहारी से कहती है कि 'तुम दिल्ली से व्यर्थ आये हो, सत्यधन के विवाह को पक्की नहीं कर सकोगे। कट्टों के संवादों में सरलता तथा सत्यधन के संवादों में वक्रता लक्षित होती है 'सुनीता' में हरि प्रसन्न के कथन में सहानुभूति तथा समर्पण की प्रवृत्ति है। श्रीकान्त - 'नहीं - नहीं अपने पसन्द की चीज बतलाओ.. . नहीं-नहीं जी, यह सब भी कोई बात होती है कि सब अच्छा लगता है.........रोज क्या खाया करते हो, जल्दी करो जी"........हरि, माफ करना, देर हो गई...... ........बात यह है घर में कोई नौकर नहीं है.... 10 हरिप्रसन्न ने कुछ दृढ़ पड़कर कहा, 'मैं अन्न नहीं खाया करता हूँ......श्रीकान्त अन्न मैं खाया तो नहीं है.......लेकिन । हरिप्रसन्न टहलते- टहलते रुक गया। उसने अप्रसन्नता से कहा- नौकर नहीं है? 2 नौकर क्यों नहीं है? 'हरि प्रसन्न सुनीता को जंगल में ले जाना चाहता है और इसके लिए सुनीता को तर्कों से परास्त करना चाहता है - जैनेन्द्र के संवाद सामान्यतः पात्रों के अनुकूल हैं। संवाद पात्रों के पद तथा व्यक्तित्व के अनुरूप हैं 'व्यतीत' में बुढ़िया के संवाद अनिता तथा जयन्त के संवादों से भिन्न हैं। उसके तर्क बड़े 1 सीधे-साधे तथा ग्रामीण हैं।" 78 जैनेन्द्र कुमार परख, पृष्ठ 74 79 जैनेन्द्र कुमार सुनीता, पृष्ठ 80 वही, पृष्ठ 81 वही, पृष्ठ 82 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ 83 जैनेन्द्र कुमार सुनीता, पृष्ठ 84 जैनेन्द्र कुमार - व्यतीत, पृष्ठ 47 - 47 - - - 40-41 47 201-203 36 [186]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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