SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कई स्थानों पर 'यथा नाम तथा गुण' की प्रणाली अपनाई गई है तथा गुण-विरोधी नाम रखे गए हैं यथा बिहारी उन्मुक्त है, मृणाल पवित्र है, भुवनमोहिनी सबको मोहित कर लेती है। जयन्त, वस्तुतः नारियों में जयन्त है, आदि। किन्तु फिर भी बिहारी बँध जाता है सत्यधन धन का सत्य बन जाता है, सुखदा दुखदा बन जाती है, सुनीता के सुनीता होने में सन्देह लगता है, हरि प्रसन्न में न वास्तविक हरियाली है न प्रसन्नता, कल्याण अकल्याणी बन जाती है। जैनेन्द्र के ढाई पात्रों की बात अत्यन्त प्रसिद्ध है। स्वयं उन्होंने कहा कि तीन चार व्यक्तियों से मेरा काम चल गया है। अतः उनके उपन्यासों में पात्र-विरलता सहज ही उपलब्ध है। जैनेन्द्र पात्रों को आवश्यकतानुसार ही अवतरित करते हैं-'सुनीता' में सत्या का 'अवतरण तब होता है जब हरि प्रसन्न को घर में बाँध रखने के लिए काम की खोज की जाती है। जैनेन्द्र के चरित्र-चित्रण में तुलनात्मक प्रवृत्ति भी लक्षित होती है। यह तुलना कभी-कभी ही सम होती है, अधिकांशतया विषम होती है। 'सुनीता' के आरम्भ में श्रीकान्त तथा हरि प्रसन्न का तुलनात्मक चरित्र-चित्रण है। दोनों की चारित्रिक विशेषताओं का अन्तर स्पष्ट किया गया है। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में कुछ पात्र संवेदना के मापक के रूप में प्रस्तुत हुए हैं। यह प्रधानता प्रमोद (त्यागपत्र) तथा वकील साहब (कल्याणी) में है। ये पीड़ा भोगती नारियों के प्रति हमारी संवेदना का असाधारण कार्य निभाते हैं। प्रमोद और वकील साहब क्रमश: मृणाल और कल्याणी की करूण गाथाएँ सहानुभूति के साथ सुनते हैं तथा सांवेगिक मूर्च्छना की स्थिति में उन्हें सहारा देते हैं। ये दोनों पात्र दुःखी नारी जीवन के प्रति अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करते हैं तथा बीच-बीच में आलोचनात्मक टिप्पणियाँ देते जाते हैं। 70 डॉ० राम रतन भटनागर - जैनेन्द्र : साहित्य और समीक्षा, पृष्ठ-170 71 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ -5 [182]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy