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________________ अन्तः सम्बन्ध काम वृत्ति से प्रेरित हैं स्त्री-पात्र पुरुषों की ओर यौन-आर्कषण से प्रेरित होकर पतियों की उपेक्षा और विरोध करते है। उनके पुरुष पात्र नारियों को 'समूची' चाहते हैं और प्रायः वह विविध पदावली से पुरुषों के प्रति प्रस्तुत रहती हैं और इसके तुरन्त पश्चात् ही पाटी पर सिर पटक कर या बूटों के तस्मों को आंसुओं से भिगोकर अथवा साड़ी-बाडी उतारकर जिस दृश्य का निर्माण करती हैं वह काम मूलक तो है परन्तु गौरवहीन है। कतिपय विचारकों ने इसकी कटु आलोचना की है। अचेतन में काम-प्रवृत्ति की सक्रियता के आत्यन्तिक चित्रण के अतिरिक्त कहीं उसके हल्के रूप का भी वर्णन है। मुक्तिबोध में मिस्टर सहाय नीलिमा के पास से आए हैं। घर आकर पत्नी राजश्री को बात-बात पर डाटते हैं। उसे उनका शेष समझ में न आ रहा था x x x x x की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मिस्टर सहाय नैतिकता का उपदेश देते हैं, इस पर नीलिमा भर्त्सना करती हुई कहती है-'मुझे नहीं मालूम था सहाय कि तुम्हारा दिल इतना कमीना हो गया है। सहाय के क्रोध पूर्ण व्यवहार में अचेतन का आहत शामिल है। जैनेन्द्र के पात्रों मे दूसरों की प्रणय-क्रीड़ाओं तथा प्रणय-रहस्यों को छिपकर देखने या सुनने की प्रवृत्ति पायी जाती है। डॉ० देवराज उपाध्याय ने इस प्रवृत्ति को 'वायोरिज्म' का नाम दिया है।" सुनीता और हरि प्रसन्न के स्टडी-रूम से हरि प्रसन्न का सम्भवतः सुनीता के लिए कहा गया शब्द 'ठहरो कहाँ जाती हो? सुनाई दिया तो वह 'बाबा रे! चिल्लाती हुई भागी जाती है। 37 जैनेन्द्र कुमार -सुनीता, पृष्ठ -198 38 डॉ० त्रिभुवन सिंह- जैनेन्द्र : व्यक्ति और कृतित्व (सं० सत्य प्रकाश मिलिंद)पृष्ठ -81-82 39. जैनेन्द्र कुमार - मुक्तिबोध, पृष्ठ -71 40 वही, पृष्ठ - 64 41. डॉ० देवराज उपाध्याय - जैनेन्द्र के उपन्यासों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन, पृष्ठ - 89 42 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ-143 [173]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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