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________________ पात्रों को जीवन के अन्तिम पड़ाव पर उन्हें रीता तथा व्यतीत दिखाना भी सोद्देश्य है, क्योंकि प्रायः व्यथा भरे अन्तिम क्षण ही विगत जीवन के अन्तर्दर्शन के लिए उपयुक्त होते हैं। प्रस्तुतकर्ता पात्र सामान्यतया चिन्तन से कथा आरम्भ करता है, आरम्भ प्रायः जगत या जीवन की समस्याओं या समाज के विधि-निषेधों को लेकर किया जाता है। यहाँ चिन्तन जिज्ञासा मूलक होता है। प्रस्तुत-कर्ता पात्र सीधा, बिना किसी भूमिका के समस्या से साक्षात्कार करता है। इस समस्या मूलक विवेचनात्मक पृष्ठभूमि से उस पात्र का जीवन उभरने लगता है, जिसकी कथा कहनी अभीष्ट है। जैनेन्द्र के दो उपन्यासों ‘त्यागपत्र' तथा 'कल्याणी' की कथा इसी रीति से प्रस्तुत हुई है। दोनों कथाएं प्रताड़ित तथा शोषित नारियों की हैं। अन्ततः वे करुणा तथा सहानुभूति की अधिकारिणी हैं। जैनेन्द्र के उपन्यासों में कुछ गौण पात्र भी कथा-विकास के माध्यम बने हैं। 'कल्याणी' का श्रीधर पात्र ऐसा ही है। वह कल्याणी के बारे में अनेक समाचार वकील साहब को लाकर देता है, श्रीधर ही वकील साहब को सूचना देता है. कि कल्याणी को मारा पीटा गया है तथा वह कराची में न होकर उसी नगर में कैद है। कथानक के विकास में श्रीधर की भी अहम भूमिका है। कथा-विकास में पत्रों का भी प्रयोग किया गया है। इन पत्रों को हम श्रीधर जैसे गौण पात्रों का स्थानापन्न मान सकते हैं। उपन्यास के विभिन्न पात्र एक दूसरे को पत्र लिखते हैं। जिससे कथानक के अनेक सूत्र स्पष्ट हो जाते हैं। ‘परख' में भगवद् दयाल के सत्यधन के प्रति तथा गरिमा के साथ विवाह सम्बन्धी विचार पत्र द्वारा ही प्रकट होते है। पिता और पुत्र दोनों की इस विषय में क्या 19 इसके कोई चारेक रोज बाद श्रीधर खबर लेकर आए कि श्रीमती असरानी एक कोठरी के अन्दर पड़ी हैं। उन्हे खूब मारा गया है और दो रोज से उन्होने कुछ खाया-पीया नही है। मैने कहा श्रीधर, क्या फिजूल बकते हो। वह तो कराची थी । कब लौटी? श्रीधर कहा कराची? कराची क्या होता है ? (जैनेन्द्र कुमार कल्याणी) 20 जैनेन्द्र कुमार - परख, पृष्ठ -78 [166]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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