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________________ सृष्टि करना है। जैनेन्द्र ने कथाओं को प्रस्तुत करने की विविध प्रणालियों को अपनाया है। कहीं वह परम्परागत ऐतिहासिक शैली है, जहाँ लेखक कथा तथा पात्रों के विषय में स्वयं कहता, बखान करता चला जाता है। कहीं प्रधान पात्र, जिसकी कथा प्रस्तुत है, स्वयं अपनी कथा 'आप बीती' के ढंग पर प्रस्तुत करता है। कहीं यह किसी पात्र की डायरी के रूप में है तथा कहीं पात्र मात्र बारी-बारी से अपनी कथा पाठक के सामने प्रस्तुत करते हैं। कहीं-कहीं कथाकार ने किसी गौण पात्र को वक्ता के रूप में रखा है जो अपने किसी सम्बन्धी या परिचित की कथा बड़े आत्मीय तथा करुणोत्पादक ढंग से प्रस्तुत करता है 'त्यागपत्र' में प्रमोद अपनी बुआ मृणाल की कहानी प्रस्तुत करता है तथा 'कल्याणी' मे वकील साहब जो कल्याणी से सुपरिचित थे तथा जिनके यहाँ वह प्रायः आती जाती थी, कल्याणी की कथा प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार पात्रों के माध्यम से कथा प्रस्तुत करने में लेखक को विशेष तटस्थता की सिद्धि प्राप्त हुई है। लेखक बीच में नहीं आता भुक्त-भोगी या तो अपनी कथा स्वयं कह देता है अथवा कोई आत्मीय व्यक्ति उस कथा को पाठकों के सामने प्रस्तुत कर देता है। दोनों ही दशाओं में वह विश्वसनीय बन जाती है । जिसकी वह अपनी कथा है, उससे अधिक और कौन उस कथा की जानकारी रख सकता है? आत्मकथा कहते हुए पात्र प्रायः गोपनीय प्रसंगों को भी पाठक के सामने उद्घाटित कर देते हैं। कहीं-कहीं परिच्छेदों का विभाजन भाव-प्रवाह के स्वाभाविक रूप में बाधक बन गया है । “विवर्त' उपन्यास में परिच्छेद आठ के अंत तथा परिच्छेद नौ के प्रारम्भ के बीच ऐसी ही स्थिति है। भुवन मोहिनी तथा उसके पति नरेश चाय पर बैठे हैं। पति दो प्याले चाय पी चुके हैं, मोहिनी तीसरा प्याला तैयार कर रही है, दोनों में बात-चीत चल रही है, बीच में ही परिच्छेद-परिवर्तन हो जाता है। परिच्छेदों की सन्धि पंक्तियाँ उद्धृत करना प्रासंगिक होगा - 15. जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ - 3 [164]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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