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________________ तैयार नहीं थी। सुखदा के चित्रण में जैनेन्द्र ने घर के अभावों के प्रति विद्रोह अंकित किया है, पति की कारा को भी नकार दिया है। इसे हम जैनेन्द्र का आदर्शोन्मुख यथार्थ ही कह सकते हैं, किन्तु कहा जा सकता है कि जैनेन्द्र के नीतिपरक शिल्प में सुनीता अपना कोई विशिष्ट स्थान नहीं बना सकी है। भुवनमोहिनी (विवर्त) तथा अनिता (व्यतीत) पत्नी ओर प्रेयसी के बीच उठती हुई नारियाँ हैं। सुनीता या सुखदा की भाँति इनमें घर और बाहर अभाव और तृप्ति की समस्याएं नहीं, दोनों अपने पति के घर में सुखी हैं। अपने पति पर उन्हें अदम्य निष्ठा है। किसी भी मोड़ पर वे पति से अलग होने की कल्पना नहीं करतीं परन्तु पूर्व के प्रेमी के प्रति के अपना कुछ कर्तव्य समझती हैं । वे महसूस करती हैं कि प्रेमी की निराशा की दशा का कुछ कारण वे भी हैं। इसलिए उनका कर्तव्य है कि ये पूर्व प्रेम की आस्था के ही नाते उनकी निराशा को सुधारें । इस दृष्टि से वे दोनों यद्यपि पत्नीत्व में बधकर प्रेयसीत्व के असामाजिक कृत्य की पूर्ति का साहस करती है, तथापि वे पातिव्रत्य से विचलित नहीं होती। इसी वर्ग में नीलिमा में पत्नीत्व और प्रेयसीत्व का कोई द्वन्द्व नहीं है । न मिस्टर दर को नीला के प्रेयसीत्व पर ईर्ष्या या सन्देह है। मुक्त वातावरण में विचरण करती हुई आधुनिका नीलिमा जहाँ पत्नी है, वहाँ आजीवन पत्नी ही है । प्रेयसीत्व तो केवल मुंह का जायका बदलने के लिए आता दीख पड़ता है । नीलिमा जैनेन्द्र के किसी आदर्श का प्रतीक मालूम होती है । नीलिमा से जैनेन्द्र ने प्रेम के प्रति आस्था प्रकट करने का सफल प्रयास किया है । नारी पात्रों का तीसरा वर्ग उन स्त्रियों का है, जो अनुगता पत्नियाँ है । वे अपने पति के प्रति पूर्णतः समर्पिता हैं, उन्हें पति की प्रसन्नता में प्रसन्नता है, दुःख में दुःख । राजश्री ( मुक्तिबोध), गरिमा 4 डॉ० मनमोहन सहगल - उपन्यासकार जैनेन्द्र मूल्यांकन और मूल्यांकन, पृष्ठ- 70 [154]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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