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________________ वह दान के लिए तत्पर है, पात्र कुपात्र से उसे क्या लेना। पति ने उसके धर्म को नहीं पहचाना, किन्तु उसने पातिव्रत्य का पूर्ण पालन किया। पति की आशा शिरोधार्य कर वह घर से चली आई। रुचि का पुरुष तो जीवन की विसंगति है, जो भी उसे भोगे, उसे अब कोई इनकार नहीं। मृणाल के जीवन में सेक्स की समस्या का यह रूप सामाजिक दृष्टि से दूषित दीख पड़ता है, किन्तु जैनेन्द्र जी ने मृणाल को इतनी सहानुभूति दी है कि उसके वर्णन में बौद्धिक युक्तिवाद के सहारे उन्होंने उसे सती-पतिव्रता दिखाया है, जिसको पढकर पाठक मृणाल के प्रति घृणा न करके करुणा से भर जाता है। कल्याणी भी इसी वर्ग की साधिका है। कल्याणी का लगातार शोषण हुआ है। उस पर चारित्रिक लांछन लगाकर बदनाम करने का षड्यन्त्र किया गया है। विवाह के लिए तैयार हुई तो पति ने हर तरफ से उसका शोषण किया। उसकी संवेदनाओं की न केवल हत्या की गयी बल्कि उसे सामाजिक अपमान का भी सामना करना पड़ा। कल्याणी के मन में अनेक बातों ने जन्म लिया, किन्तु वह तो शान्त भाव से अपने पति द्वारा किए गए समस्त अत्याचारों को सहती रही। इसी प्रकार इला और वसुन्धरा भी आत्मपीड़क वर्ग की स्त्रियां है, किन्तु इनकी सैक्स समस्या मृणाल आदि से भिन्न है। कथाकार ने उक्त स्त्रियों का मनोवैज्ञानिक हल खोजने की अपेक्षा उन्हें समाज में असाधारण असंभाग एवं उदान्त एवं उदात्त बनाने में अपनी सूक्ष्म दृष्टि का परिचय दिया। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में दूसरा महत्वपूर्ण वर्ग ऐसी स्त्रियों का है जो विवाहिता हैं, किन्तु अपने पूर्व प्रेमियों के प्रति अब भी उनमें कुछ आकर्षण शेष है। वे पत्नीत्व और प्रेयसीत्व के बीच में फंसी हुयी हैं। जैनेन्द्र की दृष्टि में वे पति परायणा है और सतीत्व के बोझ को 3. डॉ. मनमोहन सहगल - उपन्यासकार जैनेन्द्र : मूल्यांकन और मूल्यांकन, पृष्ठ - 64 [152]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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