SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कि 'जीवन का कुछ अर्थ ही नहीं अगर मौत उसके आगे फुल स्टाप की तरह बैठ जाय। इसलिए मृत्यु स्थायी वस्तु नहीं है। उनके अनुसार मौत के माध्यम से ही व्यक्ति को रास्ता मिलता है। 32 ' दर्शन की राह' और 'तौलिए' कहानियों में जैनेन्द्र जी ने मृत्यु के सत्य को उद्घाटित किया है। जैनेन्द्र जी के अनुसार मरना जीवन को राह देता है। हम कहीं बन गये होते हैं, काम आ चुके होते है। संसार में कुछ समय व्यतीत करने के बाद मृत्यु अनिवार्य होती है । इस प्रकार जैनेन्द्र ने स्पष्ट कर दिया है कि मृत्यु अनिवार्य है 1 जैनेन्द्र के अनुसार शहीद होने वाले मनुष्यों को मौत की कोई चिन्ता नहीं रहती । वह कर्तव्य में लीन रहते हैं। उनके कथा साहित्य में जीवन की बलि देने वाले पात्र प्रसन्नता से मृत्यु का आलिंगन करते हैं, किन्तु मौत के लिए जिज्ञासु नहीं होते । 'फाँसी' कहानी में शमशेर मौत से नहीं बचता, किन्तु जब मौत के माध्यम से ही परमार्थ सम्भव है तो वह उसकी उपेक्षा भी नहीं करता और कहता है कि मेरी मौत में दुनिया की अर्थसिद्धि है, मेरी भी परमार्थसिद्धि है। विश्व का अर्थ सिद्ध करने वाले व्यक्ति की मौत आती है। परमात्मा उसे भेजता है । व्यक्ति क्यों न उसे साथ ले और आगे बढ़े। 33 यही जैनेन्द्र के कथा साहित्य का अभीष्ट है। 'कहानी की कहानी' में लेखक ने गाँधी जी की मृत्यु द्वारा उनकी अमरता की ओर इंगित किया है । 34 जैनेन्द्र के कथा साहित्य में पात्रों के मन में मृत्यु का भय नहीं रहता है। जैनेन्द्र के अनुसार मौत कैसी होती है, कोई नहीं जान सकता। मौत की कहानी में लेखक ने यम का बहुत ही डरावना ,35 जैनेन्द्र की कहानियाँ, पृष्ठ - 69 31 जैनेन्द्र कुमार 32 जैसे एक दिन होकर और कुछ दिन रहकर हम बिसर जाते है, कि यह होना रहना काल का ही खेल था, उस खेल के लिए हमारा न होना संगत हो गया है। (जैनेन्द्र कुमार इतस्ततः, पृष्ठ 109 ) जैनेन्द्र प्रतिनिधि कहानियाँ, पृष्ठ कुमार 34 जैनेन्द्र कुमार 35. जैनेन्द्र कुमार 24 33 जैनेन्द्र की कहानियाँ, भाग-8, पृष्ठ-52 मौत की कहानी, पृष्ठ - 68 [138]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy