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________________ कथा साहित्य द्वारा समाज के इस दोष को दूर करते हुए प्रेममय भावों के प्रसार का प्रयत्न किया है। अन्त में, यह स्पष्ट है कि जैनेन्द्र साधन की शुद्धता के आधार पर प्राप्त होने वाले साध्य को ही स्वीकार करते हैं। वे रक्त क्रान्ति के द्वारा लायी जाने वाली समानता के पक्ष में नहीं थे। उनकी दृष्टि में इस प्रकार की समानता ऊपर से थोपी गयी होगी। इसलिए कभी न कभी उसकी प्रतिक्रिया की सम्भावना बनी ही रहेगी। इसलिए जैनेन्द्र परिस्थिति और समस्या को लेकर किये जाने वाले सुधार के पक्ष में नहीं थे। जैनेन्द्र ने अर्थ को महत्वपूर्ण माना, किन्तु उनकी दृष्टि में अर्थ ही साध्य नहीं हो सकता। इस प्रकार वे अर्थ और काम को मार्ग मात्र मानते हैं। उनके अनुसार धर्म पूर्वक उपार्जित अर्थ द्वारा अपना तथा अपने समाज का हित करते हुए मोक्ष की ओर उन्मुख होना ही मानव जीवन का लक्ष्य है। [121]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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