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________________ भूमिका प्रेमचन्दोत्तर युग के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कथाकारों में जैनेन्द्र कुमार का नाम सर्वप्रमुख है। प्रेमचन्द के बाद जो सबसे सक्रिय रचनात्मक पीढी आई, जैनेन्द्र जी उसके अग्रदूत थे। उन्हे प्रेमचन्द का उत्तराधिकारी कहा जाता है। जैनेन्द्र जी और उनके कथा-साहित्य का हिन्दी साहित्य में असाधारण महत्व है। हिन्दी कथा-साहित्य को जो सघन अस्मिता और दार्शनिक दृष्टि जैनेन्द्र जी ने दी, वह आन्तरिक सत्य से हमारा साक्षात्कार कराती है। प्रेमचन्दोत्तर युग से रचना प्रारम्भ करके वे कथा - साहित्य जगत् में आये। क्योंकि अन्य साहित्यिक विधाओं की अपेक्षा कथा साहित्य में युग को आत्मसात् करने की क्षमता अधिक होती है। कथा साहित्य में युग चेतना को अभिव्यंजित करना अपेक्षाकृत आसान होता है। इसलिए जैनेन्द्र को युग चेतना की अभिव्यंजना में अपनी प्रतिभा का उल्लास दिखाई पड़ा। जैनेन्द्र ने उपन्यास - कहानी के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ लिखा है, किंतु साहित्य जगत् में उन्हें मूलतः कथाकार के रूप में जाना जाता है। इसी रूप में वह साहित्य - जगत् में प्रतिष्ठित भी हैं। उन्हें हिन्दी कथा - साहित्य को नवीन दिशा देने का श्रेय प्राप्त है। 'त्यागपत्र', 'सुनीता', 'परख', 'कल्याणी', 'सुखदा', 'विवर्त', जयवर्धन', आदि उपन्यासों में सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक जीवन-दर्शन रूपायित हुआ है। जैनेन्द्र प्रत्येक सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्ति के धरातल पर अपने पात्रों के माध्यम से मानवीय और कौतूहलपूर्ण परिस्थितियाँ उत्पन्न करते हैं । उनकी चेष्टा बाह्य से अधिक अन्तर्मुखी होती है। उन्होंने जीवन की वाह्य समस्याओं को न लेकर जीवन के उत्स को अपनी रचना का
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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