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________________ के मध्य की खाई को भरने का प्रयास किया है। उनके अनुसार यदि धर्म आत्मा की वस्तु है तो विज्ञान शरीर की वस्तु हैं। दोनों का अटूट सम्बन्ध है जैनेन्द्र के अनुसार आधुनिक युग में एक मात्र गाँधी ही धर्म के महान वैज्ञानिक हुए हैं। विज्ञान जीवन से ही सम्बद्ध है। मानव उपयोगिता से पृथक होकर विज्ञान का कोई महत्व नहीं है। जैनेन्द्र ने धर्म को विज्ञान से युक्त बनाने के लिए उसकी आत्मा को ही ग्रहण किया है। कर्म के प्रति निष्ठा ही विज्ञान का धर्म है। धर्म का यही स्वरूप जैनेन्द्र ने अपने उपन्यास 'कल्याणी' में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है। जैनेन्द्र ने कहा है कि 'उपयोगी कर्म में अपने को भूलकर लगे रहना ही धर्म है। जैनेन्द्र के अनुसार वैज्ञानिक यदि मानव धर्म की ओर बढ़ेगा तो एक ऐसी आस्था का जन्म होगा जो सामान्य अर्थ में भिन्न होगी। विज्ञान की सार्थकता आस्थापरक होने में है। जैनेन्द्र के अनुसार धर्म आस्था का विषय है, किन्तु कभी-कभी उसमें इतना तर्क -वितर्क उत्पन्न हो जाता है कि धर्म की मूल संवेदना नष्ट हो जाती है। जैनेन्द्र ने इस सत्य को अपनी एक कहानी में कोयले में आग के अस्तित्व के आधार पर दर्शाया है। उनके अनुसार मुक्का-मुक्की द्वारा तत्व निर्णय ही काल ज्ञापन का एक उपाय नही है अन्य भी अनेक कर्म हैं, जीवन उनसे भी चलता है, बल्कि बहस की जगह उन कार्यों को करना कुछ कहला सकता है। 36 जैनेन्द्र कुमार - इतस्ततः, पृष्ठ - 189 37. वही, पृष्ठ - 190 38 जैनेन्द्र कुमार - कल्याणी, पृष्ठ -54 39 डॉ० कुसुम कक्कड - जैनेन्द्र का जीवन दर्शन, पृष्ठ -69-70 [104]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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