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________________ व्यवहार में लाती थीं। वेश-भूषा एवं साज-सँवार बहुत हद तक पहनने वाले व्यक्तियों की मानसिक अभिरुचि का परिचय देती है। जैनेन्द्र जी ने 'सुनीता' में साड़ी-ब्लाउज तथा पेटीकोट का उल्लेख किया है। सुनीता जंगल में हरि प्रसन्न के सम्मुख अपनी साडी ब्लाउज तथा पेटीकोट उतारकर नंगी हो जाती है। जैनेन्द्र का उद्देश्य वेश-भूषा को साहित्य में प्रस्तुत करना नहीं है। आचार-विचार और रीति-रिवाज आचार-विचार और रीति-रिवाज सभ्यता और संस्कृति की व्यापक परिधि में समाहित होते हैं। प्रत्येक संस्कृति के आचार-विचार और रीति-रिवाज के अपने नियम होते हैं जो दूसरी संस्कृति से पृथक् होते हैं। अनेक देशों के विचारकों ने विभिन्न युगों में आदर्श मनुष्यों के विभिन्न रूप व्यक्त किए हैं। 'प्लेटो' का 'दार्शनिक शासक', अरस्तू का 'मनस्वी व्यक्ति, 'गीता' का 'स्थितप्रज्ञ', बौद्धों का 'बोधिसत्व', नीत्से का 'अतिमानव' आदि ये सब आदर्श पुरुष की ही विभिन्न कल्पनाएँ हैं। अन्य कल्पनाएँ कवियों, नाटककारों तथा उपन्यासकारों की कृतियों में मिल सकती है। जैनेन्द्र आस्थावादी कलाकार है और उन्हें गीता के कर्मयोग पर पूरी आस्था है। यद्यपि कुछ सुविज्ञ समीक्षक जैनेन्द्र जी को अनास्थावादी कलाकार कहते हैं, किन्तु यह उचित नहीं है। जैनेन्द्र जी मनुष्य के जीवन को भगवान की देन मानते हैं और यही कारण है कि जीवन के प्रति उनका उपयोगितावादी दृष्टिकोण समस्त साहित्य में व्याप्त है। यदि हमने मनुष्य योनि पायी है तो उसका पूर्ण सदुपयोग किया जाय। जीवन से जूझने पर भी मनुष्य को अपनी वीरता और बहादुरी से कार्य करते [95]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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