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________________ हमारे दैनिक व्यवहार में, कला में, साहित्य में, धर्म में, मनोरंजन में और आनन्द में पाये जाने वाले रहन-सहन और विचारों की अन्तनिर्हित प्रवृत्ति का प्रकाशन है।" संस्कृति के विकास में आदान-प्रदान का भाव निहित होता है, क्योंकि मानव मात्र के वैयक्तिक व्यवहार संस्कृति का अंग कभी नहीं बन पाते। जब उन्हें दूसरों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है तो वे संस्कृति में समाविष्ट हो जाते हैं। संस्कृति व्यवहारों का समूह मात्र नहीं है, अपितु व्यवहारों का अन्योन्याश्रित होकर एक सुदृढ़ व्यवस्था में ढ़ल जाना है। पारस्परिक सम्पर्क संस्कृति के विकास में प्रमुख उपादान हैं। संस्कृति की शाश्वत दीर्घता पारस्परिक संपर्क पर ही अवलम्बित होती है। डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में' "हमें किसी सिद्धान्त का त्याग इसलिए नहीं करना चाहिए कि वह अभारतीय है। हमें विदेशी सिद्धान्त भी गुणों की कसौटी पर ग्रहण करना चाहिए। संस्कृति का क्षेत्र और अभिव्यक्ति के उपादान संस्कृति शब्द से मानस-पटल पर एक सुनियोजित प्रतिच्छवि व्यापक क्षेत्र को आत्मसात् करते हुए खिंच जाती है। इसका सम्बन्ध मनुष्य के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक एवं कलागत जीवन के विभिन्न पहलुओं से है। मनुष्य ने विवाह द्वारा परिवार और समाज का निर्माण किया और सामाजिक नियमों के प्रतिपादन द्वारा पारस्परिक सम्बन्धों को दृढ़ बनाया है। सामाजिक सम्बन्धों को व्यापक रूप प्रदान करने के उद्देश्य से ही उसने अपने निकटवर्ती सम्बन्धों में विवाह निषिद्ध किया। पारिवारिक विस्तार कल, 11 मैकाइवर एण्ड पेज - सोसायटी, पृष्ठ - 449 12. डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी - विचार और वितर्क, पृष्ठ -125 [75]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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