SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मौत की कहानी चर्चा छिड़ी प्रेम पर, प्रा पहुंची मौत पर । किस रास्ते प्रेम से चल. कर बेहूदे विषय पर हमारी चर्चा आ गई, यह हमको ठीक तौर से पत नहीं चला । हमारी क्लब-मण्डली के रस-प्रधान सदस्य बाबू प्रेमकृष्ण भटनागर एडवोकेट ने कहा, "यह मौत जाने कहाँ से बीच में कूद पड़ती है कि हमारा सब करा-कराया चौपट कर देती है । इसके मारे नाक में दम है । आज यहाँ बैठे हैं, कल का भरोसा नहीं। ऐसे में क्योंकर कुछ करने को जी चाहे । यही है, कि जाने कब वह बीच में आ टपके; इसलिए जितने दिन रहना, मजे से रहना; अपना तो यही उसूल है।" इसके समर्थन में फिर एक शेर कहा, "जो मुझे याद नहीं है।" प्रोफेसर ज्ञानविहारी ने कहा, "बस अब वह थोड़े ही दिनों की मेहमान है । अब भी अपनी दवाइयों से कम्बख्त को साल-दो-साल दूर भगाये रखते हैं । थोड़ी देर और ठहरने की बात है, फिर तो उसे ऐसी धता बताई जायगी, कि इधर भूलकर भी मुह न करे।" प्रोफेसर ज्ञानविहारी साइंस के बड़े प्रोफेसरों में से थे और पदार्थविज्ञान में विशेष पैठ रखते थे। ____ डा० विद्यास्वरूप ने कहा, "उसकी आवश्यकता अब धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है । जीवन क्या इसलिए है, कि उसका अन्त मौत में हो
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy