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________________ जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवां भाग] बिना कुछ कहे शून्य-भाव से भाभी ने भी हाथ बढ़ाकर उन्हें ले लिया। राजीव तब मौन खड़ा रह गया। भाभी भी कुछ नहीं बोलीं। उसी समय जोर-ज़ोर से बजते हुए मोटर के होर्न की. आवाज़ आई। राजीव ने कहा, "अच्छा भाभी" और झटपट झुककर खड़ी हुई भाभी के चरन छूकर वह जल्दी-जल्दी लौट पाया। आकर बैठक का दरवाजा खोल, बाहर बरामदे में जो गया कि देखता है, मोटर में स्वयं ला० शिवशंकरलाल बैठे हैं। शिवशंकर ने देखते ही कहा, "क्या बना रहे हो, राजीव ! चलो न।" राजीव ने कहा, "बस, आ ही रहा हूँ। दो मिनिट ।" और अन्दर जाकर झपटकर बाँहों में कोट डाला, पतलून चढ़ाई, टाई को खुला ही लटकने दिया, हैट रखा, छड़ी थामी, बैठक के किवाड़ दिए, मोजे और उस पर बूट पहना और सहन से होकर मकान की ड्योढ़ी की ओर लपका। ___ सहन पार कर रहा ही था, एक साथ बाल्टी-भर गरम रंगीन पानी ऊपर से ऐन उसके सिर पर आकर पड़ा, ऐन सिर पर ! उसकी चोट से हैट नीचे आ रहा, कपाल भीग गया और कपड़े सब खराब हो गए ! किन्तु उस समय राजीव का जी फूल-सा खिल आया। जैसे वह इस भाँति नहाकर धन्य हो उठा। उसने बिगड़कर धमकी के स्वर में कहा, "यह कौन है ? दीखता नहीं है कि कोई भला आदमी कहाँ जा रहा है !" इसके उत्तर में बड़ी ज़ोर से खिलखिलाने की ध्वनि राजीव के कानों में पड़ी। "हाँ-आँ ?" और ज़ोर से बूटों को सहन के फ़र्श पर पटकता हुआ वह उसी मुह अपने कमरे में लौटकर आया, धोती पहनी, पैरों में चप्पल डाली, और बैठक के किवाड़ खोल सामने बरामदे में आया।
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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