SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजीव और भाभी ३३ विशञ्च ऊपर बैठे-बैठे मुस्कराए होंगे। कहते होंगे — 'देखो लड़के की बात ! अरे, हम फिर कुछ ठहरे ही नहीं ! जो ये दुनिया के छोकरे हमें बिना वूझे सब करने लगेंगे, तो हो लिया काम ।' और उन्होंने उस समय कौतुकपूर्वक प्रोठों ही मोठों में कहा होगा - अच्छी बात है, चिरंजीव राजीव ! तो लो, क्रीड़ा देखो ।' मोटर सवा नौ पर आती, राजीव क्या देखता है कि उससे पहले ही चले आ रहे हैं- - डाक्टर सीताशरण । गुलाल से मुह रँगा है, और कपड़े तरबतर हैं । राजीव ने कहा, "क्या हाल है डाक्टर साहब ?" डाक्टर ने बताया कि ये बालक बड़ी बला होते हैं । देखते तो हो कि क्या गति बना दी है। घर से अच्छा भला चला था, यहाँ श्राते तक खासा लंगूर हो गया हूँ । उसके बाद डाक्टर ने पूछा कि यह क्या है ? क्यों है ? क्या अकेला है ? श्रीमती कहाँ हैं ? छुट्टी हुई। राजीव घर में बन्द छोड़ गई ? – चलो राजीव ने कहा कि नहीं, ऐसी शोचनीय परिस्थिति नहीं है । फिर भी मायके गई हैं। तभी तो वह जरा चैन से दिखाई देता है । उस समय जेब में से डाक्टर ने चुपके से रंगीन पानी से भरी एक शीशी खींची। राजीव ने किन्तु देख लिया, कहा, "हें - हें डाक्टर ! मुझे पार्टी में जाना है ।" 'डरो मत, ' डाक्टर ने कहा, "यह जादू का रंग है" और राजीव के बहुतेरा कहते-कहते और भागते-बचते डाक्टर ने उसके उजले कपड़ों पर रंग छिड़क ही दिया और मुहं पर जरा गुलाल भी मल दिया । "घबराओ नहीं राजीव, देखो रंग अभी ग़ायब हो जायगा ।" और सचमुच पानी सूखते - सूखते कपड़े पर जरा भी रंग का धब्बा नहीं रहा ।
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy