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________________ राजीव और भाभी ३१ इससे क्या उसे छोड़ दिया जाय ? भाभी ऐसी क्या पस्त- हिम्मत हैं ? हाँ-हाँ, राजीव- साहब बड़े ही बुजुर्ग, बड़े ही सज्जन हैं, लल्लो पत्तो भी जानते हैं । लेकिन यों बचने से दुर्गति दुगुनी होगी, जान लीजिएगा । क्योंकि होली होली है और भाभी भी भाभी है । उस वर्ष राजीव की खासी मरम्मत हुई । और तो और, उसकी नवेली पत्नी भी भाभी के षड्यन्त्र में शामिल हो गई । तब राजीव ने भी कमर से साहस बाँधकर बचाव में थोड़ा कुछ ऊधम किया कराया । उस रोज़ खुल पड़ी हुई श्रानन्द की बयार ने राजीव की जीवन- नौका के पालों को ऐसा भरपूर भर दिया कि वह उड़ती ही चली गई । वह तमाम संवत्सर तैर गया हो, मानो ऐसे निकल गया । इस वर्ष राजीव की परिस्थिति भी खूब सुधर आई, माँग बढ़ उठी और उसकी पहुँच ऊँचाइयों में होने लगी । इसी तरह कई वर्ष निकलते गए । जिस होली की बात कहने चले हैं, उसके लिए तय पा गया था कि भाभीजी बड़ी तमीज़दार हैं और बड़ी अच्छी हैं, सो राजीव को माफ़ ही रखेंगी । तय तो पा गया था, किन्तु होली से दो रोज़ पहले बात-बात में जब अजीब गम्भीरता से भाभी ने कहा, "देखो, उन्हें अच्छा नहीं लगता । ओर कुनबे में एक गमी भी हो गई है । अबके कुछ दंगा मत मचाना ।" तब अनायास राजीव कह उठा, "यह बात है !" भाभी ने कहा, "नहीं भाई, मैं हाथ जोड़ती हूँ, इस बार घर में रंगवंग कुछ भी न होगा ।" राजीव ने कहा, "मैं तो डालूँगा ।" प्रति विनीत होकर भाभी ने कहा, “तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ, राजीव ! अब गमी हो गई है । मैं नहीं तो कभी ऐसा कहती हूँ ?" 1 राजीव भाभी के इस अनुनीत भाव पर मन-ही-मन शंकित और
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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