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________________ २६ राजीव और भाभी कहना कठिन है कि राजीव में प्रतिभा की शक्ति कितनी थी। किन्तु जब उसमें अतीव भूल थी कि कोई उसे पूछे, तब वह निरा अकेला अपने को पाता था । दुनिया की निगाह बाजार की ओर थी, भला राजीव में क्या उसका अटका था ? बस माँ उसकी थी, जो घर का काज-धन्धा करती थी। पत्नी तब नहीं आई थी। एक रोज़ माँ की तबीयत कुछ खराब थी। वह रोटी नहीं बना सकती थीं । सो रोटी बनाई, सब काम किया, और राजीव नौकरी खोजने के लिए निकल गया। लौटकर आ सका कहीं शाम को। हाराथका था, और भूखा था। कि सुस्ता कर जब चूल्हे पर कुछ चढ़ाने के विचार से चौके में वह गया तो देखता है, कि वहाँ तो कई भाँति के उज्ज्वल बर्तनों में पक्का खाना रखा हुआ है ! राजीव ने पूछा, "माँ, तुमने खाना बनाया है ?" माँ ने कहा, "नहीं तो बेटा, बहू-रानी ने भेज दिया है।" माँ से कई बार राजीव ने बहू रानी का जिक्र सुना है । यह हवेली उनकी ही है । और भी जायदाद है । वह बड़ी दयावन्त हैं। राजीव की नौकरी लगने के बारे में अक्सर पूछती रहती हैं। हवेली का थोड़ा-सा हिस्सा राजीव और राजीव की मां को उठा दिया है, बाकी ऊपर वह खुद रहती हैं । दो बच्चे हैं, जो उन्हें भाभी कहते हैं । कभी-कभी मोटर में उन्हें जाते राजीव ने देखा है। इस घर में भी कभी-कभाक वह दीख गई हैं। ज़रा देह से स्थूल हैं, लेकिन हँसने वाली बड़ी हैं। मन की तो बहुत ही अच्छी हैं। और रूप की-( लेकिन, वहाँ तो वह अन्दाज़ से ही काम लेता है, क्योंकि ठीक तरह उसने कोई उन्हें देखा थोड़े ही है )-रूप की तो वह सर्वथा देवी ही हैं, ऐसा सुश्री मुख है। ___राजीव ने कहा, "माँ, तुमने कह न दिया कि रज्जो पाकर खुद बना लेगा। वह क्यों तकलीफ़ करती हैं ?"
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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