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________________ जैनेन्द्र की कहानियाँ [ सातवाँ भाग ] ठहरो । ( जल्दी-जल्दी कपड़े ठीक करती हुई दरवाजे की ओर जाती है । पास पहुँचकर फिर सोच में पड़ जाती है । ) मिलने का समय यह नहीं है । आवाज – मैं चार्ली हूँ, लिली । ( उत्तर न पाकर ) मुझे आने की इजाजत दो | लीला - अभी नहीं । अभी में तैयार भी नहीं हुई । चार्ली - आधे घण्टे में फिर श्राऊँ ? लीला – अच्छा । चार्ली अच्छा [ चार्ल्स के लौट जाने की आवाज पाकर दरवाजा खोलती और लौटते हुए चार्ल्स को देखती है । चार्ल्स जाते-जाते ठहरता है, क्षण-इक समन्जस में रुकता है और वापिस लौट माता है । देखता है, लीला द्वार खोले खड़ी है । लीला को समय नहीं मिलता कि दरवाजा बन्द कर दे । ] चाल्स - ( पास आकर ) में देर न लूँगा । निबट लो, तब और बातें होंगी । लेकिन मुझे याद आया कि तुम्हारी माँ की बीमारी की खबर मुझे देनी है— लीला – प्रानो, अन्दर बैठो । चार्ली - यह समय अन्दर आकर बैठने का है ? लीला – तुम नाराज हो ? मेरी माँ बीमार है । मैं बीमार हूँ । फिर तुम नाराज हो ! चार्ली - यह तुम को क्या हुआ है ! यहाँ किस जगह आ गई हो ! अपने को यह क्या बना डाला है ! कभी आइना भी देखती हो ? माँ का कुछ हाल-चाल रखती हो ? लीला - मैं क्या करूँ ? चार्ल्स - चलो, घर चलो ।
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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