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________________ क्या हो ? १६ε पिता ने कहा, "सुषमा को तुम समझा दो बेटा, तो हमें तो खुशी ही होगी ।" थोड़ी देर में माता-पिता आदि को कुछ काम निकल प्राया और एकान्त पाकर दिनकर ने पत्नी से कहा, "सुषमा मेरी एक बात सुन सकती हो ?" ... ज़रूर सुन लेगी । सुनानो, वह चुप है 1 22 '... मैंने तुम्हें दुःख ही दुःख दिया ।.. वह चुप है । "मैं कैसे कहूँ, तुम मेरी बात मानो; लेकिन मरते की एक बात यों भी मान लेते हैं । मैं ब मौत से कितनी दूर हूँ ? " I सुषमा चुप ही है । "मैं सुषमा, यह जानता हुआ मरना चाहता हूँ "" दिनकर, ऐसी बात धीमी चाल से नहीं, झटपट कह डालो कि एक ही घूंट में वह गटक ली जाय । कैसी कड़वी बात कह रहे हो, सो टको नहीं; क्योंकि सुषमा चुप है और उसके भीतर मन भी है । "यह जानता हुआ मरना चाहता हूँ कि मैं अकेला मर रहा हूँअकेला।" अरे, कहे जानो न, कहे जाम्रो । सुषमा चुप है । 'अकेला । यह पक्का ज्ञान लेकर मरना चाहता हूँ कि मेरे मरने से तुम विधवा नहीं बनोगी ।... 12 चुप । " कुलवन्त को तुम जानती हो..." तब सुषमा ने घू ंघट के भीतर से ही आहिस्ता से कहा, "मुझे तुम एक ज़हर की पुड़िया दे जाओ, बस ।” दिनकर एकदम भूला-सा हो गया । उसने सुना
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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