SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो लाये ? दफ्तर जाता हूँ तो सामने के घर के चबूतरे पर एक खटिया पड़ी रहती है । पाता हूँ तब भी वह खाट वहीं ही मिलती है। वह दिन-रात वहीं रहती है। __ उस पर के आदमी की तरफ मेरा ज्यादा ध्यान नहीं है। सिवाय इसके कि वह खाँसता बहुत है और इस वजह से आस-पास काफी गन्दगी रहती है । खैर, मैं ऊपर से उतर सीधा दफ्लर चला जाता हूँ और शाम को जीना खोलकर ऊपर घर आजाता हूँ । घर में से मालूम हुआ कि इस नीचे पड़े आदमी की घर वाले बड़ी बेकदरी करते हैं। और तो और ऊपर से डाँटते-डपटते भी रहते हैं। हो तो उनसे एक बार जरा कहकर देखो न ? ___मैंने कहा, "कहने से तो वृथा गाँठ पड़ेगी, लाभ कुछ होगा नहीं, और मैं नया अनजान आदमी हूँ।" वह बोली, "रोगी को मरना तो है ही, पर क्या ऐसे जान-बूझकर मारा जाता है। ले के निकाल पटका है बाहर ! और गन्दगी भी तो इससे फैलती है। मैं तो दिन-रात खों-खों से परेशान रहती हूँ। क्यों जी ! कुछ किया नहीं जा सकता ?" १२३
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy