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________________ चिड़िया की बच्ची नहीं देखती ? कैसी सुन्दर तेरी गरदन, कैसी रङ्गीन देह ! तू अपने मूल्य को क्यों नहीं जानती ? मैं तुझे सोने से मढ़कर तेरे मूल्य का चमका दूँगा। तैंने मेरे चित्त को प्रसन्न किया है । तू मत जा, यहीं रह ।" चिड़िया, "सेठ, मैं अपने को नहीं जानती । इतना जानती हूँ कि माँ मेरी माँ है । और मुझे प्यार करती है । और मुझको यहाँ देर हो रही है । सेठ, मुझे रात मत करो, रात में अँधेरा बहुत हो जाता है और मै राह भूल जाऊँगी।" सेठ ने कहा, "अच्छा, चिड़िया जाती हो तो जाओ। पर इस बगीचे को अपना ही समझो। तुम बड़ी सुन्दर हो।" यह कहने के साथ ही सेठ ने एक बटन दबा दिया। उसके दबने से दूर कोठी के अन्दर आवाज़ हुई जिसे सुनकर एक दास झटपट भाग कर बाहर आया । यह सब छन-भर में हो गया और चिड़िया कुछ भी नहीं समझी। सेठ कहते रहे, "तुम अभी माँ के पास अवश्य जाओ । माँ बाट देखती होगी। पर कल आओगी न ? कल आना, परसों आना, रोज आना । तुम बड़ी सुन्दर लगती हो।" ___ यह कहते-कहते दास को सेठ ने इशारा कर दिया और वह नौकर चिड़िया को पकड़ने के जतन में चला। सेठ कहते रहे, "सच, तुम बड़ी सुन्दर लगती हो ! तुम्हारे भाई-बहिन हैं ? कितने भाई-बहिन हैं ? चिड़िया, "दो बहिन, एक भाई है । पर मुझे देर हो रही है-" "हाँ हाँ जाना । अभी तो उजेला है। दो बहन, एक भाई है । बड़ी अच्छी बात है-" पर चिड़िया के मन के भीतर जाने क्यों चैन नहीं था । वह
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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