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________________ १८६ जैनेन्द्र की कहानियां [तृतीय भाग] नौकर ही नहीं था। नौकरी से आगे बढ़कर स्वामि-भक्ति का भी उसे चाव था जो कि नौकरी के लिए असह्य दुर्गुण नहीं तो और क्या है ? सेठजी ने पूछा, "हीरासिंह, यह क्या बात है ?" हीरासिंह चुप रह गया। सेठजी ने कहा, "इसका पता लगाओ, हीरासिंह । नहीं तो अच्छा न होगा।" हीरासिंह सिर झुकाकर रह गया। पर कुछ ही देर में उसने सहसा चमत्कृत होकर पूछा, “रात गाय खुली तो नहीं रह गई थी ? जरूर यही बात है। आप इसकी खबर तो लीजिए।" घोसी को बुलाकर पूछा गया तो उसने कहा कि ऐसी चूक कभी उससे जन्म-जीते-जी हो सकती ही नहीं है, और कल रात तो हुजूर, पक्के दावे के साथ गाय ठीक तरह से बँधी रही है। हीरासिंह ने कहा, “ऐसा हो नहीं सकता" सेठजी ने कहा, "तो फिर तुम्हारी समझ में क्या हो सकता है।" हीरासिंह ने स्थिर भाव से कहा, "गाय रात को आकर ड्योढ़ी में खड़ी रही है और अपना दूध गिरा गई है।" यह कहकर हीरासिंह इतना लीन हो रहा कि मानो गौ के इस दुष्कृत पर अतिशय कृतज्ञता में डूब गया हो। ___ सेठजी ऐसी अनहोनी बात पर कुछ देर भी नहीं ठहरे । उन्होंने कहा, "ऐसी मसनुई बातें औरों से कहना। जाओ, खबर लगाओ कि वह कौन आदमी है, जिसकी यह करतूत है।" हीरासिंह ड्योढ़ी में चला गया। ड्योढ़ी इस हवेली और उस दुनिया के दरमियान है और उसके लिए घर बनी हुई है। और
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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