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________________ कामना-पूर्ति नगर में एक महात्मा पधारे हैं। उनकी बड़ी महिमा है। यज्ञदत्त पण्डित हेतराम वैश्य ने बड़ाई सुनी, तो घर जाकर महात्मा की बात सुनाई । सेठानी के पुत्र न था । यों खुशहाली थी, लेकिन कुल-दीपक के बिना सब फीका था। सम्पदा किसके लिए, गौरव किसके लिए, जब कुल का नाम चलाने को ही कोई न हो ? हेतराम ने कहा, "महात्मा सिद्ध पुरुष हैं। सब मनोरथ उनसे पूरे होंगे।" सेठानी को विश्राम नहीं आता था । कई बार दान किया और कथा बैठाई। पर वह निराश हो चुकी थी। सोचा कि यह इतना कहते हैं तो एक महात्मा और सही। इस तरह सेठ और सेठानी दोनों ने अगले रोज़ महात्मा की शरण में जाने का निश्चय किया। __उधर पण्डित-दम्पति को अर्थ की समस्या थी। सन्तति की दिशा में भगवान् का अशीर्वाद था-आठवाँ पुत्र गोद में था।
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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