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________________ १५६ जनेन्द्र की कहानियां [तृतीय भाग] बताने वाले ने बताया, "ये कारखाने हैं।" उसने कहा, “कारखाने तो होंगे। पर ये लम्बी गर्दनें, जो धुआँ उगलती हैं, ये क्या हैं ? यही कारखाने हैं ? इनमें आदमी।" धीरज धरकर राहगीर ने उत्तर दिया, “ये उन्हीं कारखानों की चिमनियाँ हैं।" ____करमसिंह सुनता रह गया। उसकी समझ में कुछ नहीं आया। उसने कहा, “कारखानों में सुनते हैं आदमी होते हैं । चिमनियाँ क्या उन्हीं का धुआँ बनाती हैं ?" उस की बात सुनकर राहगीर का धीरज टूट गया और वह "अपनी राह सीधा हो लिया । ___ करमसिंह बहुत विचार में पड़ गया। पहले तो कारखाने होते हैं जिनमें बहुत-से आदमी काम करते हैं। फिर उनकी चिमनियाँ होती हैं, जिनकी गरदन बहुत ऊँची होती है और जो अन्दर आदमियों को लेकर मुंह से धुआँ निकालती हैं। ऐसा ही चिमनीदार कोई कारखाना होगा जिसमें अजीत काम करता होगा। लेकिन काम तो मैं गया तब भी उसे घर पर करने को बहुत था । खेत थे, बैल थे, गऊ थी और सेवा के लिए हारी-बीमारी में पासपड़ोसी लोग थे । वह काम फिर क्या था जो अजीत कारखाने में करने गया ? उसकी अकल काम नहीं दे रही थी। अपनी झोंपड़ी की जगह लाल-लाल धधकती हुई भट्टी की उसे याद आती थी। झोपड़ी में हम रहते थे। इस भट्टी के ऊपर कौन रहता होगा? जरूर उस भट्टी के होने में किसी का कुछ मतलब तो होगा । पर वह मतलब उसकी समझ में कुछ नहीं पाता था। वह जिस-तिस से पूछने लगा, "भाई ये कारखाने और ये
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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