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________________ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग ] रमेश के पिता साढ़े पाँच बजे दफ्तर का काम निबटा घर लौटे। साइकिल श्राज नहीं थी, इससे सड़क छोड़ कर घास के मैदान में रास्ता काट कर चले। रास्ते में क्या देखते हैं कि एक दस ग्यारह बरस की लड़की, भयभीत इधर-उधर रास्ते पर आँख डालती हुई चली आ रही है। सलवार पहने है और कमीज, और ऊपर सर से होती हुई एक ओढ़नी पड़ी है। लड़की मुसलमान है और उसके एक हाथ में छोटी-सी पोटली है। पैर जल्दी-जल्दी रख रही है और इधर-उधर चारों तरफ़ निगाह फेंकती हुई बढ़ रही है । चेहरे पर हवाइयाँ हैं और आँख में आँसू आ रहे हैं। साँस भरीसी लेती है और कुछ मुँह में बुदबुदाती है । रमेश के बाबू जी ने पूछा, “क्या है बेटी ?” ८६ लड़की पहले तो सहमी-सी देखती रही । फिर रोने लगी । "हाय रे मैं क्या करूँ ? अम्माँ मुझे बहुत मारेंगी । अम्माँ मुझे बहुत मारेंगी। हाय रे ; मैं क्या करूँ ?” बाबू जी ने पूछा, "बात क्या है, बेटी !" लड़की बोली, “एक रुपया और एक इकन्नी थी । कहीं रास्ते में गिर गई !” "कहाँ गिर गई ? और कब ?" लड़की ने कहा, "मैं जा रही थी। यहीं कहीं गिर गई । घर । पास पहुँच कर देखा कि गिर गई है । यह अभी हाल ही जा रही थी । श्रजी, अभी हाल । बहुत देर नहीं हुई। हाय रे, अब मैं क्या करूँ ? अम्माँ मुझे मारेंगी । अम्माँ मुझे मारेंगी ।” लड़की डर के मारे बदहवास थी । सत्रह माने की कीमत इस लड़की या उसकी माँ के लिए जरूर सत्रह आने से कहीं ज्यादा
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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