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________________ फोटोग्राफी उनसे सदा के लिए विदा ले लेने को था, कि उससे कहा गया"आपने बड़ा कष्ट उठाया। इतनी कृपा और करें कि सबेरेतार देदें।" __हाथ से एक रुपया रामेश्वर की ओर बढ़ाते हुए माँ ने लाहौर का अपना पता लिखवा दिया । पता लिखते ही रामेश्वर भाग गया। 'यह लेते जाइए'की आवाज उसके पीछे दौड़ी पर वह नहीं लौटा । स्टेशन के बाहर आते ही, जब माँ के नौकर ने उसे पकड़कर रुपया हाथ में थमाना चाहा, तब उसने एक झिड़की के साथ कहा, “जाओ ! रेल पर वह अकेली हैं। कह देना, तार सबेरे ही दे दिया जायगा।" तार-घर खुलते ही लाहौर तार दे देने के बाद रामेश्वर ने सोचा-उसके जीवन का एक पन्ना जीवन-क्रम से अनायास ही अलग होकर, जो एक प्रकार की रसमय घटना से रँग गया है, उसे हठात् यहीं अन्त करके मुझे अब अगला पन्ना आरम्भ कर देना होगा । उसे इस पर दुःख हुआ । प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी घट जाती हैं, जिनको वह समाप्त कर देना नहीं चाहता, उनका सिलसिला बराबर जारी रखना चाहता है। श्याम को सदा के लिए भुला देना होगा-भाग्य का यह विधान उसे बहुत ही कठोर मालूम हुआ । उसकी इच्छा थी कि उसके जीवन-ग्रन्थ के अन्तिम पन्ने तक 'श्याम' और 'श्याम की अम्माँ' का सम्बन्ध चलता रहे-टूटे नहीं; परन्तु अब उनके बीच में दो सौ पचास से ज्यादा मील का व्यवधान है, और उनके जीवन की दिशाएँ भिन्न होने के कारण, उस व्यवधान को क्षण-क्षण बढ़ा रही हैं। उसके सामने, मानों जीवन की और संसार की शून्यता एक
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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